घरों से गायब होकर सरकारी दफ्तरों तक सिमटा बीएसएनएल का लैंडलाइन फोन

घरों से गायब होकर सरकारी दफ्तरों तक सिमटा बीएसएनएल का लैंडलाइन फोन
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बेहतरीन सुविधाओं के अभाव में उपभोक्ताओं का हुआ मोहभंग

मोकलसर

एक जमाने में बीएसएनएल का बेसिक फोन घर की शान हुआ करता था, घर में जब ट्रिन-ट्रीन की आवाज के साथ किसी का फोन आता था तो घर के सभी सदस्य बेसिक फोन की तरफ भाग जाया करते थे। लेकिन आज वो ही बेसिक फोन घरों से गायब होकर कॉल सेंटर या सरकारी दफ्तर तक ही सिमट कर रह गया हैं। लोगों का बीएसएनएल के प्रति इतना क्रेज था कि इसकी सिम कार्ड पाने के लिए ग्राहकों की लंबी-लंबी कतारें लगती थी और जिनको सीम कार्ड मिल जाता वह आपने आप को सौभाग्यशाली समझता था। वह दौर था जब टेलीकॉम की दुनिया में बीएसएनएल का अपना एक अधिपत्य था और उस दौर में कभी गुलजार रहने वाले इन बीएसएनएल टावरों और आफिसों के हालात इस तरह हो जाएंगे यह कभी किसी ने सोचा नहीं था। सही मायने में बीएसएनएल इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही हैं। उनके कर्मचारी रिटायर होते गए, उनकी जगह पर कोई नियुक्ति नहीं हुई। एक समय में कर्मचारियों व ग्राहकों से गुलजार रहने वाले इसके ऑफिस आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाते नजर आ रहे हैं।

 

इस वजह से पिछड़ा बीएसएनएल

 

एक समय में घरों के बेसिक फोन पर ट्रिन-ट्रिन की आवाज बजती थी लेकिन बदलते वक्त के साथ तकनीकी क्रांति में बेसिक फोन काफी पिछड़ गया और इसकी जगह मोबाइल ने ले ली। यह छोटा व सुविधाजनक होने की वजह से इसे कहीं भी ले जाने के चलते उसने बेसिक फोन की जगह ले ली। यही कारण है कि बेसिक फोन की संख्या लगातार कम होती जा रही है। वहीं निजी कंपनियों के मोबाइल का प्रयोग बढने और विभिन्न प्रकार की स्कीमें आने से बेसिक फोन का महत्व घट गया। अब पहले की तुलना में बेसिक फोन आधे से भी कम रह गए है। या यूं समझिए घरों से लगभग गायब से हो गए हैं।

 

मनमाने रवैये के चलते हुआ उपभोक्ताओं का मोहभंग

दरअसल बीएसएनएल की वर्तमान स्थिति की वह खुद जिम्मेदार है, क्योंकि अधिकारी व कर्मचारी अपनी मनमानी चलाते हैं, उपभोक्ता की समस्या को दरकिनार किया जाता हैं, आज भी क्षेत्र में ऐसे कई फॉल्ट हैं जिसकी वजह से सेवाएं ठप हैं मगर उसको वक्त पर दुरुस्त नही किया जाता। इससे उपभोक्ताओं का मोह भंग होता गया और उन्होंने दूसरी निजी कम्पनी चुन ली। वहीं दूसरी तरफ टॉवरों के लगाने के लिए जो सामान आता था उसे समय पर लगाया नही जाता था, जो ऐसे ही पड़े पड़े कबाड़ हो जाते थे। लेकिन जिम्मेदार उसे समय पर लगाने की जहमत नहीं उठाते थे। और उपभोक्ताओं की समस्या का समय पर निस्तारण नही किया जाता था।

 

रिलायंस जियो का भी हुआ असर

हालांकि बीएसएनएल घाटे में जाने की वो काफी हद तक स्वयं जिम्मेदार हैं। रही बाकी कसर वो रिलायंस जिओ कंपनी ने पूरी कर दी। क्योंकि रिलायंस जियो के द्वारा पेश की गई सस्ती मोबाइल डेटा सर्विस ने सभी टेलीकॉम कंपनियों को प्रभावित किया। लेकिन बीएसएनएल पर इसका खास असर पड़ा। क्योंकि बीएसएनएल मुख्य रूप से ब्रॉडबैंड कनेक्शन के लिए थी जो कि दूसरी कंपनियों की तुलना में सस्ती और तेज सेवा थी। लेकिन इसकी सेवाएं अक्सर बाधित रहती थी। ऐसे में लोगों के पास जियो के रूप में सस्ता विकल्प मिल गया तो लोगों ने बीएसएनएल का ब्रॉडबैंड छोड़ जिओ को अपना लिया।

संपादक: भवानी सिंह राठौड़ (फूलन)

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