ईवीएम बहाना न बनाएं

ईवीएम बहाना न बनाएं
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नमस्कार नेशन

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। जिसमें बीजेपी की पूर्णमत से सरकार बनी हैं। इसके लिए बहुत-बहुत बधाई। उम्मीद करते हैं बीजेपी सरकार में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, रोजगार आदि के क्षेत्र में विकास के नए आयाम स्थापित होंगे। हार जीत के बीच लोगों के बीच कई प्रकार की चर्चाएं सुनने को मिली जिसमें ईवीएम का भी जिक्र किया गया। इस पर मैं यह दावा तो नहीं करता कि ईवीएम हैक हो सकती है या नहीं लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि आज तक इसकी पारदर्शिता पर सवाल बरकरार है। ईवीएम के खिलाफ सबसे पहले बीजेपी ही कोर्ट गई थी। सुब्रमण्यम स्वामी 2014 से पहले ही ईवीएम के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ चुके हैं। सबसे पहले ईवीएम पर किताब बीजेपी ही लेकर आई थी। और बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी जी ने इस किताब का विमोचन किया था। किताब का नाम था “लोकतंत्र खतरे में हैं” क्या हम ईवीएम पर भरोसा कर सकते हैं? यह सच है कि समय के साथ-साथ वीवीपीएटी व कई अन्य उपकरण आदि की व्यवस्था जरूर की गई लेकिन अबतक कोई खुलकर न इसके विरोध का साहस जुटा सके हैं और न खुलकर समर्थन कर सके हैं।ईवीएम हैकिंग पर अबतक तो कई किताबें, पत्रिकाएं, खुलासे, एक्सपर्ट राय आदि सामने हैं पर सवाल का जवाब आज भी नहीं मिला कि क्या हम ईवीएम पर भरोसा कर सकते हैं? सवाल सिर्फ देश की राजनीति या सत्तासीन पार्टियों का नहीं बल्कि सम्भावना यह भी हो सकती है कि ये सब अंजान हो और इसमें अंतरराष्ट्रीय ताकतें खेल रहीं हो? कुछ भी सम्भव है क्योंकि हमने पारदर्शिता को नाक की लड़ाई से जोड़ दिया है। यह ईवीएम का विरोध नहीं बल्कि एक पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया हेतु बहस है। हम यह भी मान लें कि यह एक अपनी हार को अस्वीकार करने का मात्र कारण है तो फिर इसकी पारदर्शिता अबतक संदिग्ध क्यों और यदि इसपर वाकई समस्या है तो बाकि दल चुनाव हो जाने बाद केवल दो दिन ही बातें क्यों करते हैं? फिर अगले पांच सालों तक इसपर क्यों कुछ नहीं बोलते? क्यों अदालत नहीं जाते? क्यों आंदोलन नहीं करते? क्यों चुनाव बहिष्कार नहीं करते? सवाल ये भी कायम है।

संपादक: भवानी सिंह राठौड़ (फूलन)

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