हर मानव को कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा : संत कृपाराम

हर मानव को कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा : संत कृपाराम
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नमस्कार नेशन/फागलिया

मनुष्य अपने जीवन में जैसा काम करेगा वैसा फल उसे भोगना ही पड़ेगा, यह शब्द सोमवार को फागलिया पंचायत समिति के बाधा में स्थित वाकल धाम में चल रही सांत दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक संत कृपाराम महाराज ने कहे। संत ने आगे कहा कि परमात्मा को भजने वाला परमात्मा का हो जाता है,
संतो की महिमा का गुणगान करते हुए बताया कि संत तपस्या के बल से महकता है , संतो का लगाव भगवान से होता है और जो हरि को भजता है वो हरी का हो जाता है, भागवत कथा का वाचन करते हुए कृष्ण व दुर्योधन के बीच युद्ध का वर्णन किया। संत कृपाराम ने विदुरानी द्वारा श्री कृष्ण को केले के छिलके खिलाने वाले प्रसंग को सुनाते हुए कहा की भगवान छपन भोग के भूखे नहीं है अगर प्रेम से एक पुष्प भी अर्पण कर दे तो वो भी उसे स्वीकार है। भगवान दुष्टों का उद्धार करने व भक्तों को आनंद देने इस धरती पर आते है, अगर भगवान पैसे लेते देखते तो भगवान श्री राम कभी भी आदिवासियों व शबरी के वहा कभी नहीं जाते और श्री कृष्ण भी कभी भी सुदामा को अपना परम मित्र नहीं बनाते अगर पैसे ऐश्वर्य को देखते क्यों की ये सब इन भक्तों के पास नहीं था और जो भी था वो सच्चा प्रेम था जिस से भगवान खुद इन के वहा पधार गए और कहा अगर जीवन में समस्या आ जाए तो भगवान से ये मत कहो की समस्या बहुत है बल्कि ये कहो की समस्या तो बहुत है लेकिन तेरी कृपा भी बहुत है | आज इस भाग-दौड़ की जिंदगी में जो व्यक्ति चार घंटे एक जगह बैठ कर ध्यान से कथा सुनाता है समझो उस पर भगवान की बड़ी कृपा है, और कहा की जीवन में कर्म की बड़ी महानता है कर्म करने में सावधान रहो, अगर कर्म अच्छे नहीं करेगे तो आगे जाकर दुख भोगना पड़ेगा, जो अच्छे कर्म करेगा वो जीवन में सुख पाएगा, आज की कथा में संत श्री ने विधुर विधुरानी के आंगन में श्री कृष्ण आगमन की कथा सुनाई, श्री कृष्ण ने विधुर और विधुरानी के प्रेम को स्वीकार किया और विधुर जी द्वारा मैत्रेय ऋषि के द्वारा भागवत कथा का श्रवण किया | व कथा में बाल संत ने अपनी सुन्दर वाणी से प्रवचन व भजनों की प्रस्तुति दी। कथा मे आरती के लाभार्थी मांगीलाल पुत्र।देदाराम डूडी बाधा व प्रसाद के लाभार्थी बांकाराम, गोमाराम जाखड़ कंकराला रहे। इस दौरान भंवराराम सुथार नवापुरा, दमाराम हूंडा नवातला सहीत भक्त जन मौजुद रहे।

संपादक: भवानी सिंह राठौड़ (फूलन)

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