जैन संतो ने किया स्थान परिवर्तन
चौहटन :चातुर्मास के दौरान जैन संत एक ही स्थान पर स्थिर रहकर धर्म आराधना करते है। जैन मत के अनुसार इस मौसम में बारिश की वजह से अन्य जीव उत्पन्न होते है तथा विहार के दौरान उनकी विराधना ना हो इसलिए साधु साध्वी का विहार नही होता है।
तथा कार्तिक पूर्णिमा को उस स्थान को छोड़कर अन्य विहार का प्रावधान दिया गया है।
इसी क्रम में चौहटन में विराजमान महातपस्वी मुनिराज प.पु. यशोहीरविजयजी म.सा अपने उपाश्रय से पुखराज भवरलालजी धारिवाल के यहाँ विहार कर रात्रि विश्राम किया। धारीवाल परिवार ने गुरुदेव का हर्षोउल्लास पूर्वक वधावना किया। तत्पश्चात उपस्थित जनसमुदाय ने गुरुदेव के श्रीमुख से आंनदपूर्वक मांगलिक का श्रवण किया। वयोवृद्ध प.पु गुरुदेव चौहटन में स्थायी विराजमान है। वही चातुरमासार्थ विराजित प.पु. हेमप्रभा श्री जी म सा की सुशिष्या प.पु कल्पलता श्री जी म सा आदि ठाणा 7 ने हरीश कुमार शंकरलालजी बोथरा परिवार की विनंती पर स्थान परिवर्तन उनके निवास पर किया। बोथरा परिवार ने गुरुवर्या श्री की अगवानी ढोल नगाड़ों के साथ की।
जैन श्री संघ के सैकड़ों महिला पुरुषो के साथ जुलूस के रूप में बोथरा निवास पर म.सा ने प्रदार्पण किया।
इस दौरान प्रवचन में गुरूवर्या ने फरमाया कि जैन धर्म मे कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है।इस दिन पालिताना तीर्थ पर द्रविड़ व वारिखिलजी के साथ 10 करोड़ साधु मोक्ष सिधारे थे।
गुरूवर्या शिलांजना श्री जी ने भावपूर्वक भक्ति के बारे में बताते हुए कहा कि हम कितने भी तीर्थो की यात्रा कर लें पर उस यात्रा के लिए भक्ति के भाव नही है तो वो यात्रा व्यर्थ है और यदि भाव उच्च है तो हम घर बैठे ही भगवान से साक्षात्कार कर सकते है। श्रावक श्राविका उपस्थित रहे मदनलाल मालू, बोहरीदास डोसी, बाबुलाल भंसाली, मांगीलाल भंसाली, रतनलाल सेठिया,दिनेश सेठिया,सुरेश सेठिया, भवरलाल डोसी, लूणसिंह, अजयसिंह, प्रकाश पारख,जुगल धारीवाल, हंसराज सिंघवी, कपिलमालू, पुखराज सेठिया,ललित सेठिया,राजू छाजेड़, गोतमचंद डोसीआदि उपस्थित रहे