परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई”-आचार्य रवींद्र
संगीतमय रामकथा के दौरान झूमे श्रद्धालु
समदड़ी
परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीडा सम नहीं अधमाई अर्थात् परोपकार के समान कोई धर्म नहीं और किसी को पीड़ा पहुंचाना सबसे बड़ा पाप यह बात शुक्रवार को राम कथा एवं प्रवचन के दौरान पं.रवींद्र आचार्य ने कहीं।
कस्बे की केशव कॉलोनी में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा और प्रवचन के दौरान कथावाचक आचार्य ने कहां कि आत्मा में परमात्मा का निवास है, प्राणी मात्र के सेवा करना मनुष्य धर्म है। मनुष्य अपने मन, कर्म और वचन के द्वारा किसी का अहित नहीं करें। यही धर्म की परिभाषा है।जब जब धर्म की हानि और अधर्म को बढ़ावा मिला तब तब इस सृष्टि पर देव स्वरूप में ईश्वर ने अवतार लिया और अधर्म व अन्याय का विनाश किया।कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। कथा के दौरान संगीतमय चौपाई और दोहों में धर्मप्रेमी थिरकते नजर आए। कथा के पश्चात आरती उतार कर प्रसादी का भक्तों में वितरण किया गया।
इस दौरान समाजसेवी राहुल गुप्ता, जोधाराम चौधरी, छगन लाल प्रजापत, चौथाराम प्रजापत, गोरधन प्रजापत, घेवरचंद प्रजापत, पारस प्रजापत, पंचायत समिति सदस्य दीपाराम प्रजापत, बाबूलाल प्रजापत, राजेंद्र गुप्ता, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नगर संघ चालक दिलीप सोनी, गोबरराम प्रजापत, त्रिवेणी शंकर दवे, अरुण व्यास, प्रदीप व्यास, जितेन्द्र दवे, प्रशांत दवे, पीतांबर दास रांकावत, महेंद्र माली, अशोक नामा, बाबूलाल माली, विक्रम रांकावत, भवनीसिंह, तिलाकराम प्रजापत आदि सैकड़ों ग्रामीण मौजूद थे।