पंचकोषात्मक शिक्षण से ही व्यक्तित्व विकास संभव – गंगा विष्णु बिश्नोई
सिवाना
आदर्श शिक्षण संस्थान बालोतरा जिले के आचार्य सम्मेलन के तीसरे दिन विद्या भारती जोधपुर प्रांत के प्रान्त निरक्षक गंगाविष्णु विश्नोई ने बौद्धिक सत्र में विषय प्रस्तुत करते हुए कहा। कि व्यक्ति के सामाजिक जीवन में आहार व्यवहार विचार खान-पान का शुद्धिकरण जरुरी है। जिसके लिए विद्या भारती विद्यालयों में पंच कोष अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय कोषों की संकल्पना की गयी है। बालक के अन्नमय कोष का विकास होना चाहिए। इसके लिए शुद्ध खानपान एवं शारीरिक बलिष्ठ होनी। चाहिए प्राणमय कोष को भी विकसित करना चाहिए। प्राण बलवान एकाग्र व उत्साही होना चाहिए। प्राण कमजोर होने पर व्यक्ति की कार्यशैली कमजोर होती है। इसके लिए योग प्राणायाम इत्यादि करना चाहिए। मनोमय कोष का दृढ़ होना जरूरी मनोमय कोष को पश्चिम नहीं मानता मन में संकल्प विकल्प होता है। मन में द्वन्द्व होता है। इसको संतुलित करने के लिए मानसिक संतुलन का स्थिर होना जरूरी है। विज्ञानमय कोष यानी बुद्धि का उत्कृष्ट होना जरूरी है। बुद्धि का विकास करने के लिए संस्कृत शिक्षण जिज्ञासा उत्पत्ति स्वाध्याय व सत्संग करनी चाहिए। मन को वश में करने का काम बुद्धि करती है। आनंदमय कोष जिसमें आत्मा की परमात्मा से भेंट है। जीव जगत वनस्पति जगत सहित सम्पूर्ण प्रकृति में ईश्वर का अंश मानना कोषात्मक शिक्षण से व्यक्ति का विकास संभव होता है। भारतीय दर्शन सेवा, प्रवचन, सत्संग, त्याग परिश्रम,अपनत्व के भाव से बालक का सर्वांगीण विकास होता है। प्रकृति की रक्षा करना मनुष्य का दायित्व है। जड़ चेतन में एक ही प्राण है। यह समग्र विकास है। वर्ग में विद्या भारती जोधपुर प्रांत शिशु वाटिका प्रमुख राजकुमार जिला समिति कार्यकर्ता राजकुमारी माधंना जिला प्रवासी भगवतदान रतनू का भी सानिध्य रहा। प्रशिक्षण प्रमुख दिलीपकुमार व्यास ने बताया कि चार दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में कक्षा शिक्षण में नवाचार एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति की क्रियान्वित के विषयों पर क्रिया आधारित कक्षा शिक्षण करवाया जा रहा है जिससे कक्षा शिक्षण में नवाचार एवं बालक केन्द्रित शिक्षा साकार होगी।