धर्म आस्था : पहाड़ी के नीचे दबाया दैत्य को, उस पर विराजित हैं सोलंकीयों की कुलदेवी खीमज माता
नमस्कार नेशन/भीनमाल
राजस्थान का जालोर जिला, और जालोर जिले में माघ कवि की नगरी के नाम से विख्यात मारवाड़ भीनमाल का नाम दूर-दूर तक जाना जाता हैं क्योंकि यहां पर भक्त विख्यात मंदिर सुंधा माता मन्दिर और सोलंकियों की कुलदेवी खीमज माता के दर्शन हेतु लाखों भक्त पंहुचते हैं। स्थानीय लोग इसे भाखरी वाली माता भी कहते हैं। पहाड़ी की चोटी पर स्थित क्षेमंकरी माता का मन्दिर बहुत ही प्राचीन मंदिर हैं, यहाँ आम दिनों के अलावा नवरात्रि में राजस्थान सहित देशभर से लोग दर्शन के लिये आते हैं। इन्हें क्षेमंकरी माता और खीमज माता के रूप में भी जाना जाता हैं, जानकारी के मुताबिक यह मंदिर150 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित हैं। मंदिर में विराजित माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं खडग है, तथा बायें हाथ में कमल एवं मुग्दर है, मूर्ति के पीछे पंचमुखी सर्प का छत्र है, तथा त्रिशूल है, देवी उपासना करने वाले भक्तों को दृढविश्वास है कि खीमज माता की उपासना करने से माता जल, अग्नि, जंगली जानवरों, शत्रु, भूत-प्रेत आदि से रक्षा करती है और इन कारणों से होने वाले भय का निवारण करती है।
खीमज माता मंदिर से जुड़ा इतिहास
ऐसा कहा जाता हैं किसी समय इस क्षेत्र में उत्तमौजा नामक का एक दैत्य रहता था। जो रात्री के समय बड़ा आतंक मचाता था। उसके उत्पात से क्षेत्रवासी आतंकित थे। उससे मुक्ति पाने हेतु क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ ऋषि गौतम के आश्रम में सहायता हेतु पहुंचे और उस दैत्य के आतंक से बचाने हेतु ऋषि गौतम से याचना की। ऋषि ने उनकी याचना, प्रार्थना पर सावित्री मंत्र से अग्नि प्रज्ज्वलित की, जिसमें से खीमज माता प्रकट हुई। ऋषि गौतम की प्रार्थना पर देवी ने क्षेत्रवासियों को उस दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने हेतु पहाड़ को उखाड़कर उस दैत्य उत्तमौजा के ऊपर रख दिया।कहा जाता हैं कि उस दैत्य को वरदान मिला हुआ था वह कि किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। अतः देवी ने उसे पहाड़ के नीचे दबा दिया। लेकिन क्षेत्रवासी इतने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें दैत्य की पहाड़ के नीचे से निकल आने आशंका थी, इसलिए क्षेत्रवासियों ने देवी से प्रार्थना की कि वह उस पर्वत पर बैठ जाये जहाँ वर्तमान में देवी का मंदिर बना हुआ है तथा उस पहाड़ी के नीचे दैत्य दबा हुआ है।
नवरात्रि में भक्तों का उमड़ता हैं जनसैलाब
हालांकि यहां आम दिनों में भी भक्त दर्शन को पंहुचते हैं, लेकिन खासकर नवरात्रि में माता मंदिर में हर्षोल्लास के साथ नवरात्रि का पर्व मनाया जाता हैं। मंदिर को विशेष आकर्षक रोशनी से सजाया जाता हैं। जहां भीनमाल क्षेत्र सहित प्रदेशभर व अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं वही ट्रस्ट की ओर से आने वाले भक्तों के लिए ठहरने की उत्तम व्यवस्था की जाती हैं।
ऊंचाई पर स्थित होने के बावजूद थकान महसूस नही करते भक्त
खीमज माता का मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित हैं। जिसकी ऊंचाई भी बहुत ज्यादा हैं लेकिन यहां सच्ची श्रद्धा के साथ आने वाले भक्त कभी थकान महसूस नही करते, बल्कि ज्यूँ ज्यूँ ऊपर चढ़ते हैं आसपास का हरियाली से परिपूर्ण दृश्य देखकर प्रफुल्लित हो जाते हैं। वहीं मंदिर पर पहुंचने के बाद वहां की शुद्ध हवा थकान को एक पल में ही गायब कर देती हैं।
यह भी हैं मान्यता
ऐसी मान्यता है कि कश्मीर के प्रतिहार शासक भयंकर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए। वे तीर्थाटन करते हुए श्रीमाल पाटन लाये गए। जब वे श्रीमाल पाटन के दक्षिण में स्थित नागा बाबा की बगीची में विश्राम कर रहे थे उस समय संयोग से एक कुत्ता नागा बाबा की बगीची की नाड़ी के कीचड़ में लोटपोट होकर राजा के समीप आकर फड़फड़ाया, इससे गीली मिटटी के कुछ कण राजा के पांव पर पड़े तो देखा कि जहाँ-जहाँ कीचड़ गिरा वहां कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया। उस समय उस बावड़ी के कीचड़ से राजा को स्नान कराया गया तो राजा कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया और उसकी काया कंचनवत हो गई।