शिल्पबाड़ी योजना के तहत मिलना चाहिए था, हुनर को बल, जहां आज भी धड़ल्ले से चल रहे हैं कारोबार, प्रशासन की नाकामी या सफेदपोश नेताओं का दबाव?

शिल्पबाड़ी योजना के तहत मिलना चाहिए था, हुनर को बल, जहां आज भी धड़ल्ले से चल रहे हैं कारोबार, प्रशासन की नाकामी या सफेदपोश नेताओं का दबाव?
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हेडिंग-सफेदपोश नेताओं की शह पर पर सरकारी जमीन पर अतिक्रमीयों का कब्जा

 

सरकारी जमीन पर अवैध बना दी इमारतें, अब खुलेआम हो रही रजिस्ट्री

 

शिल्पबाड़ी योजना के तहत मिलना चाहिए था, हुनर को बल, जहां आज भी धड़ल्ले से चल रहे हैं कारोबार, प्रशासन की नाकामी या सफेदपोश नेताओं का दबाव?

 

चुनाव नजदीक हैं नेताजी, अवैध कार्यों में हस्तक्षेप करना बंद कर दो, नही तो नमस्कार नेशन चुनावों के वक्त तथ्यों के साथ पोल खोलेगा। 

 

 

समदड़ी:हाथों के हुनर को बल मिलें और अपनी कारीगरी के जरिए अपना जीविकोपार्जन कर सकें इस हेतु राजस्थान वित्त निगम ने एक योजना चलाई थी, जिसके अंतर्गत उन्हें जमीन भी आवंटित की गई थी साथ ही अपना कार्य शुरू करने के लिए राशि भी उपलब्ध करवाई जानी थी। लेकिन राशि का तो पता नही मगर उक्त आवंटित जमीन पर कहीं भी उद्योग खुले हुए नही हैं। इससे यह प्रतीत होता हैं कि यह योजना सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई। दरअसल यह मामला बाड़मेर जिले के समदड़ी तहसील के करमावास गांव का हैं जहां सिवाना से समदड़ी जाने वाले रास्ते पर शिल्पबाड़ी योजना के अंतर्गत 30 जगहों पर उद्योग खुलने चाहिए थे, लेकिन विभाग की उदासीनता के चलते वहां एक भी उद्योग नही खुल सका। कार्यवाही के अभाव में यहां एक पत्थर घिसाई का कारखाना शुरू कर दिया हैं, यह बुरादा आमजन के लिए कितना घातक हैं, यह हर कोई जानता हैं, लेकिन जिम्मेदार इस बात को स्वीकार नही करेंगे, क्योंकि हो सकता हैं इनका गुलाबी नोटों से मुंह बंद कर दिया हो? या सफेदपोश नेताओं के दबाव में वो कार्यवाही नही कर पा रहे हो? सरकार ने हाथ से काम करने के लिए जातियों के लिए शिल्पबाड़ी योजना के अंतर्गत जमीन आवंटित की थी। लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नही हुआ। बल्कि उक्त जमीन पर प्रभावशाली लोगों ने पट्टे बनवाकर दुकानें बनवा ली हैं।

 

 

जहां खुलने चाहिए थे उद्योग वहां खुल गई दुकानें

 

ग्रामीणों ने बताया सरकार ने इस मंछा के साथ यहां जमीन आवंटित की थी वो अपना व्यवसाय यहां खोल सकें, लेकिन प्रभावशाली लोगों ने यहां पट्टे बनाकर दुकानें खोल दी हैं, इससे यहां उद्योग खुल ही नही पाए और सरकारी जनकल्याणकारी योजना कागजों में ही सिमटकर रह गई।

 

 

जिम्मेदार कार्यवाही करने की क्यों नही कर रहे हिमाकत

 

इस मामले को लेकर कई विभागीय अधिकारियों को अवगत करवाया गया मगर आज दिन तक इस दिशा में कोई कार्यवाही नही की गई यह वाकई हैरानी का विषय हैं। आखिर ऐसी क्या वजह की जिम्मेदार यहां कार्यवाही करने की हिमाकत नही कर रहे हैं। क्या ऐसे ही सरकारी जमीन पर धनाढ्य लोगों का स्वामित्व बनता रहेगा?

 

 

नेताजी को निशुल्क सलाह

 

नेताजी चुनाव नजदीक हैं, आप अपना कार्य करें, फिलहाल चुनाव तक किसी भी ऐसे कार्य में दखलंदाजी करना बंद कर कीजिए, नही तो जनता जान जाएगी। क्योंकि जनता सब जानती हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मामले मे एक नेता की संदिग्ध भूमिका भी बताई जा रही हैं। और वो ही इस कार्यवाही में टांग अड़ा रहे हैं।

 

 

सूचना यह भी

 

बता दें कि जिस जमीन पर कारखाने चल रहे हैं, इमारतें खड़ी कर दी। कारोबार चला रहे हैं, नमस्कार नेशन ने इसकी खबर प्रमुखता से खबर प्रकाशित की। तब जिस व्यक्ति की इमारतें थी उसने किसी अन्य व्यक्ति के नाम उक्त जमीन को रजिस्ट्री करवा दी। इस बीच सबसे बड़ा सवाल तो यह कि आखिर जो जमीन सरकार ने जिस उद्देश्य से जमीन आवंटित की थी वहां इमारतें कैसे खड़ी हुई? कैसे आज भी वहां पत्थरों का कारोबार चल रहा हैं? कैसे आज भी अतिक्रमी उस सरकारी जमीन पर अपना कब्जा जमाने को आमादा हैं? इतने सारे सवाल, जिसका जवाब जिम्मेदारों के पास नही।

संपादक: भवानी सिंह राठौड़ (फूलन)

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