गौरेया दिवस पर विशेष।
प्रत्येक ग्राम पंचायत में चिड़िया के लिए सरकारी गौरैया चिड़िया पक्षी रैन बसेरा होना जरूरी, सरकार भी इन्हें बचाने में आएं आगे तबी बचेगी हमारी चिड़िया रानी
गांवों में आज भी अच्छी तादाद में फुदक रही है गौरैया चिड़िया, मुख्य कारण ग्रामीण चिड़िया रानी को समय-समय दें रहें हैं चुग्गा पानी और कर रहे हैं देखरेख
नमस्कार नेशन
हम सबने अपने बचपन में एक छोटी सी चिड़िया को घर की छत, रोशनदान और आंगन पर फुदकते हुए देखा है। वह चंचल सी चिड़िया गौरैया अब कम ही नजर आती है। वर्तमान समय में ऊंची-ऊंची इमारतों और बढ़ते शहरीकरण ने उसका घरौंदा छीन लिया है। गौरैया चिड़िया कीड़े-मकाेड़ाें काे खाकर फसलाें से कीटों का प्रकोप कम करती हैं। वहीं साथ ये हमें खतरे से भी सावधान करते हैं। सांप, बिल्ली के पास में आने से आवाज करके सावधान करते हैं।चहचहाट से घरों का सन्नाटा तोडऩे वाली नन्हीं गौरैया अब कम दिखाई देती हैं। इस सुंदर पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा था और छोटे बच्चे इसे देख बड़े खुश होते थे। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट ने इसकी संख्या बहुत कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह दिखाई ही नहीं देती। पहले यह चिडिय़ा जब बच्चों को चुग्गा खिलाती थी तो इंसानी बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है।गौरैया जो कभी गांवों में हैंडपंप पर टपकते पानी से अठखेलियां करती नजर आती थी, कभी दीवार पर लगे आईने में चोंच बजाती थी। चीं चीं करती उस नन्ही गौरैया को देखकर बच्चे किलकारी मारा करते थे। वो गौरैया अब कभी-कभार ही दिखती है। शहर में तो छोड़िए गांवों में भी कम ही नजर आती हैं। हर घर में पाई जाने वाली ये नन्ही चिड़िया तेजी से कम हो रही है। ऐसे में गौरैया को बचाने के लिए पहल नहीं की गई तो वह सिर्फ किस्सा बन रह जाएंगी। जानकारों के मुताबिक गौरैया की आबादी में 55 से 60 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इनके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढिय़ों को यह देखने को ही नहीं मिले।
चिड़िया के कम होने के कारण
ग्रामीण और शहरी इलाकों में बाग-बगीचे खत्म हो रहे हैं। गगन चुंबी इमारतें और संचार क्रांति नासूर बन गई। बढ़ती आबादी के कारण जंगल साफ हो रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में पेड़ काटे जा रहे हैं। खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ रहा है। शहर से लेकर गांवों तक मोबाइल टावर एवं उससे निकलते रेडिएशन से गौरैया की जिंदगी संकट में है। लोगों का कहना है कि उनके घर में गौरैया पंखे से कटी हैं। फैक्ट्रियों का जहरीला धुआं गौरैया की जिंदगी के लिए सबसे बड़ा खतरा बना है। कार्बन उगलते वाहनों से प्रदूषण फैल रहा है। तापमान में लगातार बढ़ोतरी भी गौरैया को हमारे बीच से कम कर रही है।
ग्रामीण अंचलों में आज भी चिड़िया अच्छी तादाद में दिखती हैं
बीच शहर में अब गौरैया नहीं दिखती, लेकिन यदि आप शहर से पांच से दस किमीं आगे ग्रामीण अंचलों की ओर रुख करें तो वहां आज भी आपको गौरैया की अच्छी तादाद मिलेगी
कैसे बचाएं छोटी सी घरों में फुदकने वाली चिड़िया को
समय रहते इन विलुप्त होती प्रजाति पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्धों की तरह गौरैया चिड़िया भी इतिहास बन जाएगी और यह सिर्फ इंटरनेट और किताबों में ही दिखेगी। इंसानी दोस्त गौरैया को बचाने के लिए हमें आने वाली पीढ़ी को बताना होगा कि यह मानवीय जीवन और पर्यावरण के लिए क्या अहमियत रखती है। हम गर्मी में घरों-पेड़ों पर परीण्डे और घोंसलों की व्यवस्था कर सकते हैं। घर की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर भी रख सकते हैं। छतों और पार्कों में अनाज रखें। छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़ें और उनके घोंसलों को नष्ट नहीं करें। मिट्टी के घोंसले भी पेड़ या घरों में बांध सकते हैं।गौरैया के इस तरह गायब होते जाने के कारणों की पड़ताल की जाए तो हम मनुष्यों की आधुनिक जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति उदासीनता इसका सबसे बड़ा कारण नज़र आती है। आधुनिक बनावट वाले मकानों में गौरैया को अब घोंसले बनाने की जगह ही नहीं मिलती। जहां मिलती है,वहा हम उसे घोंसला बनाने नहीं देते।
पेड़ों पर भी बनाती हैं चिड़िया घोंसला
गौरैया चिड़िया छोटे पेड़ों या झाड़ियों में भी घोंसला बनाती है। वह बबूल, कनेर, नींबू, खेजड़ी जाल, मेहंदी, नीम आदि पेड़ों को पसंद करती है। लेकिन ये पेड़ भी बहुत कम संख्या में बचे हैं। ऐसे में इन पेड़ों को लगाने की जरूरत है।