राजनीति में हिस्सा ना लेने का सबसे बड़ा दंड ये हैं कि, अयोग्य व्यक्ति आप पर शासन करने लगता हैं
किसी प्रसिद्ध फ़ॉलोसपर ने कहा था कि हमारे लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास, व्यवस्था, रोजगार से लेकर दाल, रोटी, सब्जी, कपड़ा, मकान, दुकान सबकी कीमत राजनीति से ही तय होती है। यदि कोई व्यक्ति छाती फुलाकर यह कहता है कि उसे राजनीति पसन्द नही और यह कहकर वह राजनीति से नफ़रत करता है तो उसकी समझ बहुत कमजोर है। वह अपने ही प्रति एक तरह से अज्ञानी समान है।
मुझे भी यही लगता है कि जो व्यक्ति यह कहता है कि मुझे राजनीति पसन्द नहीं है मैं राजनीति से नफरत करता हूँ असल मे वह व्यक्ति इसलिए बोल रहा है क्योंकि वह राजनीति से नफरत नहीं करता बल्कि उसे राजनीतिक दलों और मौजूदा व्यवस्था से निराशा और हताशा है। हर व्यक्ति बड़े वादे, विचार और इरादे लेकर राजनीति में आता है मगर या तो वह इस चक्रव्यूह में उलझकर रह जाता है या फिर खुद एक और चक्रव्यूह का निर्माण करने लगता है।
राजनीति हर जगह, हर विषय मे हैं और हर व्यक्ति रोज किसी न किसी रूप में राजनीति करता है। नाते, रिश्ते निभाने हो या समाज मे रहना और घर, परिवार, ऑफिस सब की जिम्मेदारी का निर्वहन करना सब राजनीति का ही हिस्सा है मगर इस तरह की राजनीति में मूल्य है, सिंद्धान्त है, लोकतंत्र है, पारदर्शिता है, ईमानदारी है सब कुछ है, जबकि देश के राजनेताओं और उनके दलों की राजनीति में अविश्वास और कुतर्क है इसलिए उनको बदलने की निराशा के चलते यह वैचारिक विरोधाभास है।
बस इतना समझ लीजिए कि जब घर-परिवार-समाज की राजनीति में आप सब कुछ बदल कर अपने हिसाब से और सही व्यवस्था बनाते हैं तभी समाज मे आप खुश रह सकते हैं तो फिर देश की राजनीति की जिम्मेदारी भी हम सबके ही हाथ मे हैं। इसे उचित मार्ग पर लाना भी प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मदारी है। माना कि हम इस व्यवस्था को बहुत अधिक तक बदल न सकते हों लेकिन अब तक जो हुआ है उससे कुछ बेहतर तो कर सकते हैं? मिलकर कुछ बेहतर विचार करें, भविष्य बदलाव भी अवश्य ही करेगा।