भगवान महावीर की अंतिम देशना अमृत वाणी गंगा जैसी पवित्र करने वाली है:- खरतरगछाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरी
जीवन में विनय का महत्वपूर्ण स्थान होता है विनय से आपके जीवन की पहचान होती है
सूरत
सूरत शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन भवन में वर्षावास कर रहें खरतरगच्छाधिपति श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वर जी महाराज ने अपने नियमित प्रवचन में कहा की भगवान महावीर की अंतिम देशना अमृत वाणी गंगा जेसे पवित्र करने वाली है।
उतराध्यन सूत्र के 36 अध्यन एवम 36 विषय साधुओं को संबोधित करके दिए गए उपदेश हर जीव के लिए अनुकरणीय है,इसका पहला अध्यन अध्यात्म की नीव है ओर ये सूत्र विनय है।
विनय पाने या विनय करने पर हमारा ध्यान ज्यादा रहता है हमारा ज्यादा ध्यान विनय पाने पर जाता है विनय करने पर कम ध्यान रहता है ।
हमारा हृदय बोलते है तो कृतज्ञता के भाव होते है और कर्तव्य में मजबूरी के भाव होते है ।कृतज्ञता में हमारे भाव सेवा करने के होते है और कर्तव्य में मजबूरी के भाव होते है।
खच्चखच भरे प्रवचन हॉल में धर्मसभा को संबोधित करते हुवे आचार्य श्री ने कहा की हमारे भाव केसे होते है इस पर हमे ध्यान देना है हमारे भाव विनय के होने चाहिए।साधु हो या व्यक्ति सभी में विनय का होना ज़रूरी है।
घर परिवार समाज में विनय होना जरूरी है। विनय हमें भाषा सिखाता है।कदम कदम पर विनय की आवश्यकता होनी चाहिए ,शब्दो का बोलना,चलना, बैठना आपके भावो के साथ आपके विनय को दर्शाता है।
साधु एवम गृहस्थ हो दोनो को पल पल पर विनय का ध्यान रखनाहोता है।
विनय में व्यक्ति एवम स्थान को भी देखा जाता है विनय आपके शब्दो को परिमार्जित करती है।विनय छोटे हो या बड़े सभी के प्रति होना चाहिए बड़ो में आदर के साथ एवम छोटों में मुस्कराहट के साथ विनय दर्शाता है
संघ के अध्यक्ष ओम प्रकाश मंडोवरा ने बताया की श्री कुशल कांति खरतरगच्छ संघ में कई तरह की तपस्याओ की लड़ी लगी हुई है साधु श्री मृणाल प्रभ सागर जी म सा के 11 वे उपवास की तपस्या चल रही है जिनका पारणा 31 जुलाई को होगा।संघ में अन्य कई और भी तप चल रहे है।