हाथों के हुनर का कमाल, यह कलाकार घर पर बना रहे गोबर से उत्पाद;फिलहाल दिवाली पर दीये बनाने में जुटा पूरा परिवार, चाबी के छल्लो से लेकर, नेम प्लेट तक बना दी गोबर से
नमस्कार नेशन/सिवाना
कहते हैं कि हाथ में हुनर हो तो इंसान किसी का मोहताज नहीं होता। क्योंकि हाथ का हुनर सिर्फ पैेसे कमाने का जरिया ही नहीं बल्कि अपनी एक अलग पहचान बनाने का जरिया भी बन सकता है। और यह कार्य कर रहे हैं सिवाना उपखंड क्षेत्र के मोकलसर निवासी भवानी बामणिया। बामणिया घर पर आजकल दीवाली पर्व को लेकर गोबर से दीये बना रहे हैं। हालांकि इन्होंने गोबर से चाबी के छल्लो से लेकर अलग-अलग नामों की नेम प्लेट भी तैयार की हैं। इस कार्य को अंजाम देने में इनका पूरा परिवार मदद कर रहा हैं। फिलहाल भवानी शंकर बामणिया इन दियों का निर्माण अपने पैतृक निवास मेघवालों का वास में कर रहे है। इनके परिवार के सदस्य माताजी इन्द्रादेवी पत्नी सोरम कुमारी एवं बहिनें दिव्या एवं सुखी सक्रिय रूप से सहयोग दे रही है। उनका लक्ष्य है कि आस-पास क्षेत्रों में निवास करने वाले सभी गोपालको को प्रशिक्षित करेंगे जिससे उनको अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके।उन्होंने बताया कि हमारा गांव मोकलसर मिट्टी के घटकों की खातिर मशहूर था जो अब लुप्त होता जा रहा है उस धूमिल हो रही छवि को पुनः स्थापित करने के लिए गौमाता का सहारा ले रहे है। इस दौरान बामणिया ने कहा कि दीपावली पर घरो को रोशन करने के लिए मिट्टी के दियों के स्थान पर अब गोबर से निर्मित दियों से घर आंगन रोशन होंगे। रंग-बिरंगे दिये पहली बार मोकलसर गांव के बाजार में देखने को मिलेंगे। उन्होंने कहा कि फिलहाल वे भगवान पार्श्वनाथ जीव दया गौशाला से गोबर लाकर उसे धूप में सुखाकर उसका महीन पाऊडर तैयार करते है। उसके बाद उत्पाद तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि गोबर से बने दिए इको फ्रेंडली होते हैं इससे वातावरण शुद्ध बना रहता हैं।
ऐसे बनते हैं उत्पाद
यह उत्पाद बनाने के लिए ग्वार गम एव अन्य देशी उत्पाद मिलाकर इसको गूंथा जाता है। गूंथे हुए गोबर के इस मिश्रण को डाई में रखा जाता है। जिससे एक डिजाइन दार दीपक आकार लेता है। बाद में इसको सुखा कर इस पर ऑगेनिक रंगों से रंगा जाता है।
मिलेंगे रोजगार के अवसर
जिस गाय के गोबर को पहले कभी कोई विशेष तबज्जो नहीं मिली वो ही गोबर अब युवाओं के लिए सोने की खान से कम साबित नहीं हो रहा। सैंकड़ो युवा गोबर पर स्टार्ट अप करके हजारो- हजार युवा-युवतियों को रोजगार दिलाने में सहायक हो रहे है। इसी गोबर से एक ओर जहाँ युवक-युवतियां अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अपनी अहम भूमिका का निवर्हन कर रहे है।
बाल्यवस्था से ही था गाय के प्रति लगाव
कुछ लीक से हटकर कर गुजरने का जज्बा हो और सही सीख समय पर मिले तो इंसान निश्चित ही बुलंदियों को छू सकता है। इन पंक्तियों को साकार रूप दिया हैं 24 वर्षीय गौभक्त भवानी शंकर बमणीया ने। बामणिया का बाल्यावस्था से ही गौमाता के प्रति विशेष लगाव रहा है। जालोर से स्नातक की शिक्षा हासिल करके बामणिया ने ठान रखा था कि वो अपने जीवन में ऐसा कुछ अलग कार्य करेंगे जिससे मोकलसर गांव की छवि विश्व पटल पर अंकित हो।
यहां से लिया प्रशिक्षण
गोमाता के प्रति विशेष लगाव के फलस्वरूप जनवरी माह में बामणिया की मुलाकात मोकलसर स्थित भगवान पार्श्वनाथ जीव दया गौशाला के चेयरमेन संघानी तेजराज गुलेच्छा से हुई। फिर गोबर से निर्मित विभिन्न उत्पादों का प्रशिक्षण विश्वविख्यात उत्तराखंड स्थित बंशी गौधाम के प्रणेता नीरज चौधरी से लिया। फिर चौधरी ने बामणिया को विभिन्न गोबर से बनने वाले उत्पादों का व्यापक प्रशिक्षण दिया। अब बामणिया पिछले आंठ माह से विभिन्न उत्पादों का प्रायोगिक कार्य में जुटे है।
इनका कहना
मोकलसर गांव में यह कार्य बहुत सहरानीय हैं। मैं खुद मौके पर गया था। तब देखा तो वाकई गाय के शुद्ध गोबर से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं, सरकार को इस कलाकार को प्रोत्साहित करना चाहिए
–विक्रम सिंह बालावत, मोकलसर
गाय के गोबर से बने दिए इको फ्रेंडली होते हैं इससे वातावरण शुद्ध रहता हैं। सरकार को ऐसे प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए।
-चंद्रभान सोलंकी, मायलावास